विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक लगभग 10 अरब तक हो जाने का पूर्वानुमान है। यह उम्मीद की जाती है कि मामूली आर्थिक विकास की स्थिति में, इससे कृषि मांग में वर्ष 2013 की मांग की तुलना में 50% तक की वृद्धि होगी (एफएओ 2017, खाद्य और कृषि का भविष्य – रुझान और चुनौतियां)। खाद्य उत्पादन का विस्तार और आर्थिक विकास का अक्सर प्राकृतिक पर्यावरण पर बहुत प्रभाव पड़ता है। पिछले कुछ वर्षों में वन आच्छादन और जैव विविधता में उल्लेखनीय कमी आई है। भूजल स्रोत भी तेजी से कम हो रहे हैं। उच्च इनपुट, संसाधन प्रधान खेती प्रणाली के कारण बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, पानी की कमी, मृदा क्षरण और ग्रीनहाउस गैस का उच्च स्तरीय उत्सर्जन हुआ है।
कृषि-पारिस्थितिकी, कृषि-वानिकी, जलवायु-स्मार्ट कृषि और संरक्षण कृषि जैसे ‘समग्र’ दृष्टिकोणों की दिशा में एक परिवर्तनकारी प्रक्रिया एक आवश्यकता है। प्राकृतिक खेती सहित कृषि-पारिस्थितिकी जैसी परिपाटियों के परिणामस्वरूप आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकताओं से समझौता किए बिना बेहतर पैदावार होती है। इनका एफएओ और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा समर्थन किया जाता है।
आंध्र प्रदेश सरकार के रायथु साधिका संस्था (आरवाईएसएस) द्वारा किए गए फसल-कटाई प्रयोगों से पता चलता है कि शून्य बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) का पालन करने वाले मूंगफली किसानों की उपज शून्य बजट प्राकृतिक खेती का पालन न करने वाले किसानों की तुलना में औसतन 23% अधिक थी। जेडबीएनएफ अपनाने वाले धान के किसानों की उपज औसतन 6% अधिक हुई है। विज्ञान और पर्यावरण केंद्र ने आंध्र प्रदेश के 35 गांवों के 142 किसानों को शामिल करते हुए एक अध्ययन किया। लगभग 57% किसानों ने उपज में वृद्धि की सूचना दी, 35% ने समान उपज की सूचना दी, और केवल 8% ने रासायनिक आधारित खेती की तुलना में मामूली कमी की सूचना दी। अन्य मापदंडों पर केंद्रित समूह चर्चा (एफजीडी) की प्रतिक्रियाएँ नीचे दी गई तालिका में दर्शाई गई हैं:
एफजीडी की प्रतिक्रियाओं का सारांश:
प्राचल | जेडबीएनएफ अपनाने वाले 142 किसानों से एफजीडी प्रतिक्रियाओं में रुझान
(किसानों का %) |
||
वृद्धि | पहले के समान | कमी | |
जेडबीएनएफ खेतों की उपज पर प्रभाव | 57 | 35 | 8 |
जेडबीएनएफ में खेती के खर्च पर प्रभाव | 0 | 0 | 100 |
जेडबीएनएफ उत्पाद के लिए प्राप्त मूल्य | 13 | 87 | 0 |
जेडबीएनएफ के लिए शारीरिक श्रम पर प्रभाव | 78 | 7 | 15 |
जेडबीएनएफ का निवल आय पर प्रभाव | 90 | 10 | 0 |
स्रोत: अमित खुराना और विनीत कुमार, 2020, भारत में जैविक और प्राकृतिक खेती की स्थिति- चुनौतियां और संभावनाएं, विज्ञान और पर्यावरण केंद्र, नई दिल्ली
जेडबीएनएफ साइट – विशिष्ट कृषि – जलवायु परिस्थितियों के आधार पर विभिन्न प्रजातियों की फसलों की खेती की हिमायत करती है। विविध/मिश्रित फसल पद्धतियों की सहायता से किसान भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों से नियमित अंतराल पर विभिन्न प्रकार की उपज की कटाई कर सकते हैं और नियमित आय अर्जित कर सकते हैं। मिश्रित फसल प्रणाली मिट्टी के पोषण मूल्य में भी सुधार करती है, जो उत्पादकता के स्तर को बढ़ाती है और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करती है।
सीईईडब्ल्यू की एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि जेडबीएनएफ न अपनाने वाले किसान जेडबीएनएफ अपनाने वाले किसानों की तुलना में प्रति एकड़ तीन गुना अधिक यूरिया और डीएपी का उपयोग करते हैं। यह इस तथ्य को भी उजागर करता है कि चावल उगाने वाले जेडबीएनएफ-उन्मुख किसान उर्वरक की 83-99% खपत से बच सकते हैं। जेडबीएनएफ अपनाने वाले चावल किसानों के लिए अपेक्षित यूरिया उपयोग 0.59 किलोग्राम प्रति एकड़ (किलो/एकड़) है और जेडबीएनएफ न अपनाने वाले किसानों के लिए 74.46 किलोग्राम/एकड़ है, जिसके परिणामस्वरूप यूरिया की 73.87 किलोग्राम/एकड़ खपत से बचा जा सकता है (सीईईडब्ल्यू: “क्या जीरो बजट प्राकृतिक खेती इनपुट लागतों और उर्वरक सब्सिडियों की बचत कर सकती है – आंध्र प्रदेश से साक्ष्य”)।
जेडबीएनएफ के माध्यम से जिन उर्वरकों के अनुप्रयोग से बचा जा सकता है, उनका उल्लेख नीचे किया गया है।
उर्वरक | चावल | मूंगफली | मक्का |
यूरिया | 99.2 | 69.5 | 84.9 |
डीएपी | 98.5 | 90.9 | 78.4 |
एसएसपी | 82.9 | 58.3 | 79.8 |
एमओपी | 99.8 | 47.7 | 24.6 |
मिश्रण | 90.4 | 44.4 | 67.4 |
स्रोत: क्या शून्य बजट प्राकृतिक खेती इनपुट लागतों और उर्वरक सब्सिडियों की बचत कर सकती है? आंध्र प्रदेश से साक्ष्य, जनवरी 2020
‘शून्य बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) और गैर-जेडबीएनएफ के फसल चक्र आकलन’ के संबंध में आंध्र प्रदेश में सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी की रिपोर्ट के अनुसार, जेडबीएनएफ में सामग्री लागत में उर्वरक का हिस्सा 10% -20% है जबकि गैर-जेडबीएनएफ में 50% -70% है। धान, मक्का और मूंगफली के लिए गैर-जेडबीएनएफ की तुलना में जेडबीएनएफ में खेती की कुल लागत कम है (नीचे दिए गए आंकड़ों का अवलोकन करें)।
सिंचित फसलों में खेती की लागत
स्रोत: सीएसटीईपी (2020) जेडबीएनएफ – गैर जेडबीएनएफ का फसल चक्र आकलन: आंध्र प्रदेश में एक प्रारंभिक अध्ययन
हाल के अध्ययनों से पता चला है कि रासायनिक आदानों का उपयोग करके चावल की खेती करने वाले किसान औसतन 5,961 रुपये प्रति एकड़ खर्च करते हैं, जबकि जेडबीएनएफ तकनीकों का उपयोग करने वाले किसानों ने प्राकृतिक आदानों पर प्रति एकड़ 846 रुपये खर्च किए हैं। मक्का और मूंगफली की खेती के संबंध में भी समान पैटर्न देखा गया है। मक्का के लिए, जेडबीएनएफ अपनाने वाले किसानों ने प्राकृतिक आदानों पर प्रति एकड़ 503 रुपये खर्च किए, जबकि रासायनिक इनपुट का उपयोग करने वाले किसानों ने औसतन 7,509 रुपये प्रति एकड़ खर्च किए। मूंगफली के लिए, एक रासायनिक आदानों का उपयोग करने वाले किसान ने जेडबीएनएफ अपनाने वाले किसानों द्वारा 780 रूपये प्रति एकड़ की तुलना में 1,187 रूपये प्रति एकड़ खर्च किया (क्या शून्य बजट प्राकृतिक खेती इनपुट लागतों और उर्वरक सब्सिडियों की बचत कर सकती है? आंध्र प्रदेश से साक्ष्य- नीति गुप्ता, सौरभ त्रिपाठी, और हेमथ ढोलकिया – सीईईडब्ल्यू रिपोर्ट | जनवरी 2020)।
जेडबीएनएफ के अंतर्गत चावल और मक्का के किसानों के लिए उर्वरकों और कीटनाशकों पर औसत इनपुट लागत काफी कम हो जाती है
स्रोत: क्या शून्य बजट प्राकृतिक खेती इनपुट लागतों और उर्वरक सब्सिडियों की बचत कर सकती है? आंध्र प्रदेश से साक्ष्य- नीति गुप्ता, सौरभ त्रिपाठी, और हेम धोलकिया – सीईईडब्ल्यू रिपोर्ट | जनवरी 2020
प्राकृतिक कृषि उत्पादों में पोषक तत्वों की मात्रा बहुत अधिक होती है। सामान्य उत्पादों की तुलना में इनमें प्रोटीन, अमीनो एसिड, कच्चा वसा और अन्य आवश्यक पोषक तत्व लगभग 300% अधिक थे। प्राकृतिक कृषि उत्पादों में नाइट्रेट जैसे रासायनिक अवशेष लगभग न के बराबर होते हैं। आंध्र प्रदेश के 8 पायलट जिलों और 19 समूहों में रहने वाले 570 परिवारों के साक्षात्कार के माध्यम से ‘घरों के स्वास्थ्य और पोषण प्रोफाइल पर जेडबीएनएफ के बाद के प्रभावों का आकलन’ पर किए गए एक शोध अध्ययन से पता चला है कि जेडबीएनएफ अपनाने वाले लगभग 80% परिवारों में जेडबीएनएफ उत्पादों के सेवन के बाद उदर संबंधी विकारों, उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी समस्याओं में सुधार देखा गया है। जेडबीएनएफ से उत्पन्न उत्पादों के सेवन के बाद जेडबीएनएफ अपनाने वाले सभी परिवारों के शिशुओं में ताकत में सुधार और स्वास्थ्य में सुधार देखा गया है।
जेडबीएनएफ से उत्पन्न उत्पादों के उपभोग के बाद परिवारों की स्वास्थ्य संबंधी अवधारणा
स्रोत: परिवारों के स्वास्थ्य और पोषण प्रोफाइल पर जेडबीएनएफ से उत्पन्न उत्पादों के उपभोग के बाद के प्रभावों का आकलन (दिसंबर 2019)
प्राकृतिक खेती एक पूर्व-प्रतिष्ठित परिपाटी है जो जल धारण क्षमता में सुधार करने के लिए प्रमाणित है। इसमें न्यूनतम पानी की खपत की आवश्यकता होती है तथा यह पानी और बिजली जैसे संसाधनों पर निर्भरता को कम करके, अंततः भूजल भंडार को संरक्षित करने, जल स्तर में सुधार करने और किसानों पर वित्तीय एवं श्रम तनाव को कम करने के लिए जानी जाती है। व्हापसा जैसी परिपाटियों का उर्वरता में सुधार और मिट्टी की जल धारण क्षमता में सुधार करने में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसी तरह, समोच्च और बांध वर्षा जल को संरक्षित करते हैं और मृदा की नमी को लंबे समय तक बनाए रखने की सुविधा प्रदान करते हैं। इस प्रकार प्राकृतिक खेती देश में सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए कृषि-परिदृश्य का कायाकल्प कर सकती है।
अनिवार्य रूप से, प्राकृतिक खेती मिट्टी को छिद्रपूर्ण बनाने में मदद करती है और मिट्टी में नमी की मात्रा को बढ़ाती है क्योंकि वायु में पानी की मात्रा नदियों में पानी की मात्रा का 10 गुना है। प्राकृतिक खेती देश में सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए कृषि-परिदृश्य का कायाकल्प कर सकती है।
शून्य बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) में धान की फसल में पानी की खपत में कमी, ‘शून्य बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) और गैर-जेडबीएनएफ के फसल चक्र आकलन’ के संबंध में आंध्र प्रदेश में सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी द्वारा किए गए अध्ययन से स्पष्ट है। यह पाया गया कि धान की फसल के लिए गैर-जेडबीएनएफ की तुलना में जेडबीएनएफ में सिद्धांत के अनुसार 1,400 हजार लीटर और सर्वेक्षण के अनुसार 3,500 हजार लीटर (औसत प्रति एकड़) कम पानी की आवश्यकता होती है।
सैद्धांतिक और सर्वेक्षण के आंकड़ों पर विचार करते हुए दोनों पद्धतियों के लिए धान की फसल में पानी की खपत
स्रोत: जेडबीएनएफ और गैर-जेडबीएनएफ का फसल चक्र मूल्यांकन, आंध्र प्रदेश में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नीति अध्ययन केंद्र, नवंबर 2019
प्राकृतिक खेती का उद्देश्य एक कृषि पारिस्थितिकी ढांचे को अपनाए जाने को बढ़ावा देकर जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से जुड़े जोखिमों को कम करना है। यह किसानों को कम लागत वाले घरेलू इनपुट का उपयोग करने, रासायनिक उर्वरकों और औद्योगिक कीटनाशकों के उपयोग को बंद करने के लिए प्रोत्साहित करता है। प्राकृतिक खेती में मिट्टी की उर्वरता और सामर्थ्य में सुधार करके खराब मौसमी परिस्थितियों में फसलों की रक्षा के साथ-साथ खेत के बढ़ते लचीलापन के प्रमाण देखने को मिले हैं।
प्राकृतिक खेती के अंतर्गत खेतों/फसलों/बगीचों में जलवायु में उतार-चढ़ाव के लिए विशेष रूप से मजबूत प्रतिरोध देखने को मिला है। वर्ष 2018 में पेथाई और तितली चक्रवातों के दौरान, आंध्र प्रदेश में प्राकृतिक खेती के माध्यम से उगाई गई फसलों में पारंपरिक फसलों की तुलना में भारी हवाओं के प्रति अधिक प्रतिरोध देखने को मिला। सीईईडब्ल्यू द्वारा “सतत विकास लक्ष्यों के लिए शून्य बजट प्राकृतिक खेती आंध्र प्रदेश, भारत” पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि वर्ष 2017 में विशाखापत्तनम में चक्रवाती हवाओं के दौर के दौरान, धान की फसलें हवाओं और जल-भराव की परिस्थितियों में उनके निकट स्थित गैर-जेडबीएनएफ (शून्य बजट प्राकृतिक खेती) धान के खेतों में खड़ी फसलों की तुलना में काफी बेहतर तरीके से स्थिर रहीं। यह पहलू प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों के कारण किसान को होने वाली आय-हानि को कम करने में मदद करेगा।
इसी तरह, “भारत में जैविक और प्राकृतिक खेती की स्थिति- चुनौतियां और अवसर” पर सीएसई द्वारा किए गए अध्ययन में यह भी उल्लेख किया गया है कि अधिकांश किसानों ने महसूस किया कि जेडबीएनएफ फसलों में प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में समग्र प्रतिरोध में सुधार हुआ है।
प्राकृतिक खेती, भारत में प्रत्यक्ष बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी दोनों की दीर्घकालिक समस्याओं को कम कर सकती है।