विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक लगभग 10 अरब तक हो जाने का पूर्वानुमान है। यह उम्मीद की जाती है कि मामूली आर्थिक विकास की स्थिति में, इससे कृषि मांग में वर्ष 2013 की मांग की तुलना में 50% तक की वृद्धि होगी (एफएओ 2017, खाद्य और कृषि का भविष्य – रुझान और चुनौतियां)। खाद्य उत्पादन का विस्तार और आर्थिक विकास का अक्सर प्राकृतिक पर्यावरण पर बहुत प्रभाव पड़ता है। पिछले कुछ वर्षों में वन आच्छादन और जैव विविधता में उल्लेखनीय कमी आई है। भूजल स्रोत भी तेजी से कम हो रहे हैं। उच्च इनपुट, संसाधन प्रधान खेती प्रणाली के कारण बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, पानी की कमी, मृदा क्षरण और ग्रीनहाउस गैस का उच्च स्तरीय उत्सर्जन हुआ है।

 

कृषि-पारिस्थितिकी, कृषि-वानिकी, जलवायु-स्मार्ट कृषि और संरक्षण कृषि जैसे ‘समग्र’ दृष्टिकोणों की दिशा में एक परिवर्तनकारी प्रक्रिया एक आवश्यकता है। प्राकृतिक खेती सहित कृषि-पारिस्थितिकी जैसी परिपाटियों के परिणामस्वरूप आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकताओं से समझौता किए बिना बेहतर पैदावार होती है। इनका एफएओ और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा समर्थन किया जाता है।

1. उपज में सुधार
2. रासायनिक आदानों के अनुप्रयोग का उन्मूलन
3. उत्पादन लागत का निम्नीकरण और किसान की आय में वृद्धि
4. बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करना
5. पानी की कम खपत
6. पर्यावरण संरक्षण
7. मृदा स्वास्थ्य की बहाली
8. पशुधन स्थिरता
9.रोजगार सृजन
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