पद्म श्री से सम्मानित श्री सुभाष पालेकर को भारत में अनेक कृषक समुदायों द्वारा ‘कृषिका ऋषि’ के रूप में जाना जाता है। वह एक कृषि वैज्ञानिक हैं जिन्होंने देश में प्राकृतिक खेती की अवधारणा का बीड़ा उठाया है। श्री पालेकर ने अपनी प्रेरणा प्राचीन भारतीय कृषि तकनीकों, जिनके केंद्र में गाय का गोबर और गोमूत्र हैं, से ली। श्री पालेकर वेदों, उपनिषदों और अन्य प्राचीन शास्त्रों, विशेष रूप से ध्यानेश्वर, तुकाराम और कबीर से प्रेरित होकर अपनी प्रणाली को आध्यात्मिक खेती के रूप में संदर्भित करते हैं। उनका कहना है कि प्राकृतिक खेती आत्म-पुनरुद्धार करने में सक्षम है और पर्यावरण के अनुकूल है।
पृष्ठभूमि
वर्ष 1972 में अपनी कृषि की डिग्री पूरी करने के बाद, श्री पालेकर महाराष्ट्र के अमरावती के बेलोरा गाँव लौट आए। उन्होंने अपने पिता के खेत में एक दशक तक काम किया, इससे पहले यह महसूस किया कि हरित क्रांति द्वारा प्रचारित जहरीले रसायन धीरे-धीरे मिट्टी में जहर घोल रहे हैं और कृषि उत्पादकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं। उन्होंने एक बेहतर विकल्प खोजने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने प्रकृति की ओर रुख किया। उन्होंने पाया कि जंगलों में प्राकृतिक प्रणाली से पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करते हुए वनस्पतियों को पनपने की भी सुविधा मिली। बड़े वृक्ष बिना किसी रासायनिक उत्प्रेरक के स्वाभाविक रूप से विकसित हुए। इन पेड़ों ने प्रदर्शित किया कि पौधे रसायनों के उपयोग के बिना भी पनप सकते हैं और बढ़ सकते हैं। कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक, माइक्रोब्स, जो कच्चे पोषक तत्वों को किसी खेत में आसानी से विलयशील रूप में परिवर्तित कर देते हैं, को नुकसान पहुंचाते हैं।
प्राकृतिक खेती पर कार्य
इसके बाद, वर्षों के परीक्षण और त्रुटि के बाद, उन्होंने पाया है कि इस संस्कृति के निर्माण में केवल स्थानीय रूप से सुलभ बीज, गाय की नस्लों और मिट्टी का उपयोग किया जा सकता है, जिससे यह एक आत्मनिर्भर, घरेलू, बिना लागत वाली विधि बन जाती है। छह साल तक चले व्यापक शोध के बाद, जिसके दौरान उन्होंने अपने दम पर पौधों का विकास और पोषण किया, उन्होंने प्राकृतिक खेती की तकनीक तैयार की। इसके बाद पालेकर ने अपने निष्कर्षों को देश भर के किसानों के बीच प्रसारित/प्रचारित किया।
मान्यता
श्री पालेकर की राष्ट्र के प्रति समर्पित सेवा के लिए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय संगठनों एवं विशेषज्ञों द्वारा उनकी सराहना की गई है। श्री पालेकर के कार्य को भारत सरकार ने मान्यता दी है और उन्हें वर्ष 2016 में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
वह स्वेच्छा से देश भर के किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में शिक्षित कर रहे हैं।
वर्ष 2007 में, आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने श्री पालेकर को कृषि क्षेत्र में अपना सलाहकार नियुक्त किया और राज्य में इस प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए 100 करोड़ रुपये आबंटित किए। उन्होंने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में भी उनका प्रतिनिधित्व किया, जहां उन्होंने उनके निष्कर्ष और पद्धतियों का प्रस्तुतीकरण दिया। नीति आयोग ने भी श्री पालेकर को विभिन्न राष्ट्रीय स्तर के परामर्शों के लिए आमंत्रित किया है।
हिमाचल प्रदेश में ‘प्राकृतिक खेती’ का आंदोलन का स्वरूप देने का श्रेय हिमाचल के पूर्व राज्यपाल और वर्तमान में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी को जाता है। ये आचार्य जी के प्रारंभिक प्रयासों का नतीजा है कि साढ़े तीन साल के छोटे से अंतराल में यह खेती विधि प्रदेश की लगभग सभी पंचायतों और गांवों तक पहुंच गई है। पद्मश्री सुभाष पालेकर जी द्वारा प्रतिपादित इस तकनीक को हिमाचल में शुरू करने के लिए आचार्य देवव्रत जी ने राज्यपाल बनने तुरंत बाद यहां के किसानों को प्राकृतिक खेती विधि के प्रति जागरूक करने के लिए गैर-सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर काम किया। आचार्य जी ने इन संस्थाओं के साथ मिलकर किसानों को प्राकृतिक खेती विधि के बारे में न सिर्फ जागरूक किया बल्कि उन्हें इस खेती विधि को अपनाने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद आचार्य जी ने प्रदेश के कृषि और औद्यानिकी व वानिकी विश्वविद्यालयों में छात्रों और शिक्षकों के लिए प्राकृतिक खेती विधि पर राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी का आयोजन कर उन्हें जागरूक किया।
आचार्य जी ने प्राकृतिक खेती विधि के बारे में लोगों में जागरूकता लाकर प्रदेश में प्राकृतिक खेती के लिए माहौल तैयार कर दिया जिसके चलते हिमाचल सरकार ने जनवरी 2018 में प्राकृतिक खेती के लिए ‘टास्क फोर्स’ का गठन कर दिया। इसके बाद आचार्य जी ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सहित समस्त कैबिनेट, विधायकों, जिला उपायुक्तों और कृषि अधिकारियों को गुरूकुल कुरूक्षेत्र स्थित प्राकृतिक खेती के मॉडल का भ्रमण करवाया। इसके तुरंत बाद हिमाचल सरकार ने 9 मार्च 2018 को बजट सत्र के दौरान 25 करोड़ रूपये के बजट के साथ प्रदेश में ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान’ योजना की घोषणा कर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती विधि को लागू करने का फैसला लिया।
योजना की घोषणा के बाद आचार्य जी के मार्गदर्शन के अनुसार इस योजना के कार्यान्वयन के लिए ‘राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई’ का गठन किया गया। इकाई के गठन के बाद प्रदेश में प्राकृतिक खेती विधि के प्रसार के लिए रोडमैप तैयार किया गया और इस खेती के जनक ‘पद्मश्री सुभाष पालेकर’ के 6-6 दिन के बड़े प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए जिसमें आचार्य जी ने भी स्वयं उपस्थित रहकर किसानों को प्राकृतिक खेती की बारीकियों के बारे में जानकारी दी।
इसके बाद भी आचार्य जी ने प्रदेश के विभिन्न स्थानों में प्राकृतिक खेती के संवेदीकरण कार्यक्रमों में शिरकत की और विभिन्न मंचों से प्राकृतिक खेती से जुड़ने के लिए आह्वान करते रहे।
21 जुलाई 2019 को आचार्य जी हिमाचल से गुजरात भले ही चले गए लेकिन तब तक प्रदेश के 7 हजार से अधिक किसानों ने 700 हैक्टेयर से ज्यादा भूमि पर प्राकृतिक खेती को अपना लिया था। आचार्य जी लगातार रूप से भी प्राकृतिक खेती से जुड़े अधिकारियों और किसानों के संपर्क में हैं और वर्तमान में योजना की ताजा जानकारियों से भी अवगत हैं।
हिमाचल प्रदेश में ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ के कार्यान्वयन और इस योजना के तहत भविष्य की योजनाओं के लिए आचार्य जी का मार्गदर्शन ‘राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई’ को लगातार मिलता रहता है। आज हिमाचल प्रदेश में दो लाख किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपना लिया है और लाखों और किसान इस खेती विधि को अपनाने के लिए तैयार हैं।
वर्तमान में आचार्य देवव्रत गुजरात में प्राकृतिक खेती के अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके मार्गदर्शन के बाद गुजरात सरकार ने प्राकृतिक खेती को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है और अब यह गुजरात सरकार का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम बन चुका है। अभी तक के आंकड़ों के अनुसार 2000 से अधिक किसान इस विधि को अपना चुके हैं।