दिनांक 29-30 सितंबर 2020 के बीच, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा “बीपीकेपी (भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति) – प्राकृतिक खेती के सिद्धांत और परिपाटियां” पर एक राष्ट्रीय स्तर का परामर्श आयोजित किया गया था। प्राकृतिक कृषि प्रणाली, जिसमें खेत में उपलब्ध इनपुट का उपयोग शामिल है, गुणवत्तापूर्ण कृषि वस्तुओं का समर्थन करती है, किसानों की आजीविका में सुधार करती है, और एक सामाजिक-आर्थिक स्थायी कृषि पद्धति को प्रस्तुत करती है। इस परामर्श के जरिए भारतीय किसानों और उपभोक्ताओं के कल्याण के लिए बीपीकेपी के सिद्धांतों और परिपाटियों पर एक सुविज्ञ आदान-प्रदान के लिए एक मंच उपलब्ध हो सका, और जिसमें मृदा स्वास्थ्य, उत्पादन की लागत, पर्यावरण, जैव विविधता तथा उपज के उत्पादन और गुणवत्ता पर जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन के दीर्घकालिक लाभों पर चर्चा की गई। इसके अलावा, भटके हुए मवेशियों के जैव-अपशिष्ट के उपयोग की संभावना तथा बीपीकेपी- कृषि परिपाटियों के प्रबंधन और अन्य ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के साथ एकीकरण पर चर्चा की गई।
कई गणमान्य व्यक्ति- जैसे गुजरात के महामहिम राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत; माननीय केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर; माननीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री कैलाश चौधरी; नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद और सीईओ श्री अमिताभ कांत; राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष डॉ वल्लभभाई कथिरिया; और महाराष्ट्र के कोल्हापुर में कनेरी मठ के श्री कादसिद्धेश्वर स्वामी ने इस कार्यक्रम में भाग लिया और प्रेरक टिप्पणियां दीं।
600 से अधिक प्रतिभागी – जिसमें केंद्रीय और राज्य कृषि मंत्रालयों और विभागों के प्रमुख अधिकारी; राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपति और कृषि वैज्ञानिक; भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के विषय-विशेषज्ञ; कृषि विश्वविद्यालयों और संस्थानों के संकाय; कृषि विज्ञान केंद्र; अटारी केंद्र; बीपीकेपी से जुड़े संगठन और ट्रस्ट/एनजीओ; किसान संघ; और प्रगतिशील किसानों और कृषि-उद्यमियों शामिल थे – ने परामर्श में भाग लिया।
दो दिवसीय विचार-विमर्श में प्राकृतिक खेती परिपाटियों के माध्यम से स्थिरता, खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण बहाली और एसडीजी लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ-साथ किसानों के कल्याण को बढ़ावा देने के तरीकों का पता लगाने की मांग की गई। परामर्श के तकनीकी सत्र – राष्ट्रीय और साथ ही वैश्विक दृष्टिकोण, स्थायी कृषि प्रणालियों के लिए नए दृष्टिकोण, वैज्ञानिक प्रभाव मूल्यांकन और अखिल भारतीय प्राकृतिक खेती को अपनाने की संभावनाओं पर केंद्रित थे।
गुजरात, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के प्रतिभागियों ने बीपीकेपी की सफलता-वृत्तांत और अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक कृषि पद्धतियों से किसानों की आय में वृद्धि हुई, मृदा-उर्वरता और खराब मौसमी परिस्थितियों के प्रति लचीलापन बढ़ा, कृषि-आदानों पर बचत सक्षम हुई और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (30%) कम हुआ। मिट्टी की उर्वरता में बाद में सुधार – जैविक कार्बन (लगभग 30%), एंजाइमी गतिविधि, बेहतर जैविक संकेतक और पोषक तत्व सामग्री के साथ-साथ उपज की मात्रा और गुणवत्ता में भी वृद्धि हुई।
बड़े पैमाने पर किए गए प्रभाव अध्ययनों से धान, चना, सेब और अनार, गेहूं और मिर्च की फसलों में उपज में सुधार के संकेत मिले हैं। साथ ही, अध्ययनों से पता चला है कि प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को अपनाने से बी:सी अनुपात में काफी सुधार हुआ है। महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के साथ सामाजिक पूंजी पर भी सकारात्मक प्रभाव देखा गया।
Details
1. Agenda
4. Presentations (29th September and 30th September 2020)