भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी), परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत एक उप-मिशन है जो सतत कृषि पर गठित राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसए) के समुच्चय के भीतर आता है।
भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) का उद्देश्य पारंपरिक स्वदेशी पद्धतियों को बढ़ावा देना है जो किसानों को बाहरी रूप से खरीदे गए उत्पादों से मुक्ति दिलाती है। यह बायोमास मल्चिंग पर मुख्य रूप से जोर देते हुए ऑन-फार्म बायोमास रीसाइक्लिंग; गोबर-मूत्र मिश्रणों का उपयोग; और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी सिंथेटिक रासायनिक आदानों के बहिष्करण पर केंद्रित है।
बीपीकेपी योजना का कुल परिव्यय छह वर्षों (2019-20 से 2024-25) की अवधि के लिए 4645.69 करोड़ रुपये है और केंद्रीय प्रायोजित योजना (सीएसएस) के दिशानिर्देशों के अनुसरण में मांग के आधार पर कार्यान्वित किया गया है। बीपीकेपी के तहत, विभिन्न राज्यों में 2000 हेक्टेयर के 600 प्रमुख ब्लॉकों में 12 लाख हेक्टेयर को कवर करने की दृष्टि से प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा क्लस्टर निर्माण, क्षमता निर्माण और निरंतर सहयोग, प्रमाणन और अवशेष विश्लेषण के लिए 3 वर्ष के लिए 12200 / हेक्टेयर की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। यह योजना पीजीएस इंडिया कार्यक्रम के तहत पीजीएस-इंडिया प्रमाणन के अनुरूप है। आठ राज्यों- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और झारखंड ने इस योजना का चयन किया है।
केंद्र प्रायोजित इस योजना का लक्ष्य किसान की लाभप्रदता में सुधार करना, गुणवत्तापूर्ण भोजन की उपलब्धता और मिट्टी की उर्वरता और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली करने के साथ-साथ रोजगार सृजन और ग्रामीण विकास में योगदान देना है।