‘भारत का चावल का कटोरा’ के रूप में जाना जाने वाला, आंध्र प्रदेश देश में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक है। आंध्र प्रदेश में 13 जिले, छह कृषि-जलवायु क्षेत्र और पांच विभिन्न प्रकार की मृदाएं मौजूद हैं। राज्य में 10.1 मिलियन हेक्टेयर खेती योग्य क्षेत्र है, जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 37% है। सिंचित क्षेत्र कुल कृष्य क्षेत्र का 36% है। कम उर्वरता और लवणता की समस्याओं के साथ आंध्र प्रदेश में ज्यादातर लाल लैटेराइटिक और काली मिट्टी मौजूद है। बोई जाने वाली महत्वपूर्ण फसलें चावल, कपास, मूंगफली, अरहर, सूरजमुखी, काला चना और ज्वार हैं।

आंध्र प्रदेश सरकार ने खेती के ऐसे तरीकों की ओर रुख किया जो प्रकृति के अनुरूप हों, क्योंकि वे इनपुट अर्थनीति के बजाय पारिस्थितिक विज्ञान पर आधारित होते हैं। प्रत्येक साइट में पारिस्थितिकीय स्थितियों में सुधार करके, यह देखा गया है कि प्राकृतिक खेती, सिंथेटिक इनपुट की आवश्यकता को कम करती है और इसके बजाय खेती का एक ऐसा रूप प्रदान करती है जिसकी लागत, वित्तीय दृष्टि से, कम होती है और जलवायु के प्रति लचीला होता है।

प्राकृतिक खेती का किसानों की आजीविका, कृषि में युवा किसानों के करियर, नागरिकों की खाद्य और पोषण सुरक्षा, पर्यावरण की बहाली और जलवायु परिवर्तन शमन आदि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

आंध्र प्रदेश समुदाय-प्रबंधित प्राकृतिक खेती (एपीसीएनएफ)

यह कार्यक्रम आंध्र प्रदेश सरकार के कृषि विभाग द्वारा स्थापित एक लाभ-निरपेक्ष कंपनी रायथु साधिका संस्था (आरवाईएसएस) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। आरवाईएसएस को किसानों के सशक्तिकरण और सर्वांगीण कल्याण के लिए कार्यक्रमों की योजना बनाना और उन्हें लागू करने का अधिदेश दिया गया है।

आंध्र प्रदेश कार्यक्रम की उत्पत्ति

वर्ष 2004 में आंध्र प्रदेश में छोटे और सीमांत किसानों के लिए उपयुक्त कृषि के वैकल्पिक रूपों पर काम शुरू हुआ। आंध्र प्रदेश सरकार के ग्रामीण विकास विभाग द्वारा आंध्र प्रदेश समुदाय-प्रबंधित सतत कृषि नामक एक पहल की गई। यह वर्ष 2004-14 से कार्यान्वयनाधीन। यह एक राज्यव्यापी कार्यक्रम था और इसे महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से संचालित किया जाता था। प्रारंभ में यह गैर-सिंथेटिक रासायनिक कीट प्रबंधन पर केंद्रित था, और बाद में, मृदा स्वास्थ्य में सुधार और जल संरक्षण संबंधी उपाय किए गए।

बांक्स-I: एपीसीएनएफ को अकिभशाकिसत करने र्वाले सामान्य किसIांत किनम्मानुसार हैं:
क. इष्टतम मृदा स्र्वास्थ्य और पादप स्र्वास्थ्य, और पकिरणामी पशु स्र्वास्थ्य और मानर्व स्र्वास्थ्य के किलए एक स्र्वस्थ मृदा माइक् रोबायोम महत्र्वपूण है।
ख. किमट्टी को सदैर्व र्वर्ष भर फसलों (जीकिर्वत जड़ किसIांत) से आच्छाकिदत रहना चाकिहए। ऐसे महीनों में, जब फसल संभर्व नहीं है, किमट्टी खुली नहीं होनी चाकिहए इसे कम से कम फसल अर्वशेर्ष म\च कर्वर से आच्छाकिदत किकया जाना चाकिहए।
ग. किकसी खेत की किमट्टी या बड़े खेत/खेतों के संग्रह में किर्वकिर्वध फसलें होनी चाकिहए, र्वर्ष  में कम से कम 8 फसलों की किसफाकिरश की जाती है, किर्वकिर्वधता किजतनी अकिधक होगी, उतना ही बेहतर प्रभार्व होगा।
घ. किमट्टी की न्यूनतम उलट-पलट महत्र्वपूण  है, इसकिलए किबना जुताई या उथली जुताई की खेती की किसफाकिरश नहीं की जाती है
ङ. पशुओं को खेती में शाकिमल करना चाकिहए। प्राकृ कितक खेती को बढ़ार्वा देने के किलए एकीकृ त कृ किर्ष प्रणाली महत्र्वपूण  है।
च. स्र्वस्थ मृदा माइक् रोबायोम किमट्टी के जैकिर्वक पदाथ  को बनाए रखने और बढ़ाने के किलए महत्र्वपूण हैं। इस प्रकिक् रया को उत्प्रेकिरत करने के किलए जैर्व उत्तेजक आर्वश्यक हैं।
छ. जैर्व उत्तेजक बनाने के किर्वकिभन्न तरीके हैं। भारत में सबसे लोककिप्रय जैर्व-उत्तेजक मर्वेकिशयों के गोबर और मूत्र और गैर-दूकिर्षत किमट्टी के किक_र्वन पर आधाकिरत हैं।
ज. किमट्टी में र्वापस आने र्वाले जैकिर्वक अर्वशेर्षों की मात्रा और किर्वकिर्वधता को बढ़ाना बहुत महत्र्वपूण है। इनमें फसल अर्वशेर्ष, गोबर, खाद, आकिद शाकिमल हैं।
झ. कीट प्रबंधन बेहतर कृ किर्ष पकिरपाकिटयों (आईपीएम में किनकिहत) और र्वानस्पकितक कीटनाशकों के माध्यम से किकया जाना चाकिहए (के र्वल जब आर्वश्यक हो)
ञ. पुनज नन की इस प्रकिक् रया के किलए किसंथेकिटक उर्व रकों और अन्य बायोसाइड्स का उपयोग हाकिनकारक है और इसकी अनुमकित नहीं है|

 

एपीसीएनएफ (पूर्व में एपीजेडबीएनएफ)

वर्ष 2016 में, राज्य के कृषि विभाग ने ‘आंध्र प्रदेश शून्य बजट प्राकृतिक खेती’ नामक एक कार्यक्रम शुरू किया। यह कार्यक्रम वर्ष 2004 के बाद से की गई पहलों पर बनाया गया था। कार्यक्रम में जेडबीएनएफ के उपयोग, अन्य जैविक और गैर-सिंथेटिक इनपुट जैसे फार्म-यार्ड खाद, वर्मी-कम्पोस्ट, एनएडीईपी कम्पोस्ट, भैंस के गोबर, वीएएम, पीएसबी, आदि जैसे इनोकुलेंट्स का उपयोग करना जैसी मिश्रित परिपाटियों को अपनाने का आग्रह किया गया था।

आंध्र प्रदेश प्राकृतिक खेती कार्यक्रम में कुछ सामान्य सिद्धांतों का पालन किया जाता है (बॉक्स 1)। जहां तक ​​परिपाटियों का संबंध है, समुदायों के क्षेत्र और खेती की परंपराओं के साथ-साथ वैकल्पिक परिपाटियों के बारे में उनके ज्ञान के आधार पर बहुत-सी विविधताएं हैं। एकीकृत कीट प्रबंधन, एकीकृत सूत्रकृमि प्रबंधन और अन्य गैर-रासायनिक कृषि परिपाटियों संबंधी कृषि विभाग की सिफारिशों से भी किसानों की परिपाटियां प्रभावित होती हैं।

अपने मूलतत्व के रूप में, एपीसीएनएफ में सिंथेटिक रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, हर्बीसाइड और खरपतवारनाशकों के उपयोग से बचा जाता है। 6,00,000 से अधिक किसान और 34 एनजीओ भागीदार, प्रकृति और पारिस्थितिकी के विरूद्ध कार्य करने के बजाय कृषि पारिस्थितिकी में यथानिर्दिष्ट इनके अनुरूप कार्य करने के सिद्धांतों के भीतर, एपीसीएनएफ की अपनी विविधताएं तैयार कर रहे हैं। कार्यक्रम की प्रणाली में इन सभी विविधताओं को अपनाया गया है।

एपीसीएनएफ आउटरीच

प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना आंध्र प्रदेश सरकार की प्रमुख उपलब्धियों में से एक है। प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों की संख्या वर्ष 2016 में 40,000 से बढ़कर वर्ष 2019 में लगभग 7,00,000 – पिछले 4 वर्षों में 17 गुना की वृद्धि – हो गई है। नामांकित किसानों की संख्या के मामले में एपीसीएनएफ कार्यक्रम को दुनिया के सबसे बड़े कृषि पारिस्थितिकी कार्यक्रम के रूप में मान्यता दी गई है।

एपीसीएनएफ दर्शाता है कि प्राकृतिक खेती न केवल अत्यधिक लाभकारी है, बल्कि उचित समयावधि में मापनीय भी है, बशर्ते कि एक उचित कार्यनीति हो।

एपीसीएनएफ: बढ़ावा देने में नवाचार

एपी कार्यक्रम की वास्तविक सफलता अपनाई गई परिवर्धन कार्यनीति में निहित है। महत्वपूर्ण नवाचार नीचे सूचीबद्ध हैं:

  1. किसान-से-किसान विस्तार प्रणाली:चैंपियन किसानों को प्रशिक्षक बनाया जाता है। प्रति 100 किसानों पर एक किसान प्रशिक्षक है। यह सबसे महत्वपूर्ण नवाचार है। यह विधि ज्ञान-प्रवण है और इनपुट-प्रवण नहीं है।
  2. महिला स्वयं सहायता समूहों की महत्वपूर्ण भूमिका:ये समूह परिवर्तन के दौरान एक-दूसरे का समर्थन करते हुए, सदस्यों को प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक इनपुट खरीदने के लिए वित्तपोषित करते हुए, कार्यक्रम की निगरानी और प्रबंधन करते हुए ज्ञान के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  3. प्रत्येक किसान को दीर्घाकालिक सहायता:यह देखा गया है कि एक किसान को प्राकृतिक खेती में परिवर्तन करने के लिए 3 से 5 वर्ष की आवश्यकता होती है। एफीसीएनएफ किसान-से-किसान विस्तार प्रणाली और एसएचजी नेटवर्क के माध्यम से प्रत्येक किसान को सहायता प्रदान करता है।
  4. समग्र ग्राम दृष्टिकोण:एक गाँव के सभी किसानों को जेडबीएनएफ को अपनाने में लगभग 5-6 वर्ष लगते हैं। एसएचजी के व्यापक नेटवर्क के माध्यम से, कार्यक्रम एक गांव के सभी छोटे और सीमांत और काश्तकार किसानों तक पहुंचने में सक्षम है।
  5. कृषि विभाग का सहयोग:इस परिवर्तन प्रक्रिया में राज्य का कृषि विभाग अत्यंत सहायक और सक्रिय रहा है।
  6. प्राकृतिक खेती पर अध्ययन शुरू करना: प्राकृतिक खेती केपक्ष में पुख्ता सबूत तैयार करना महत्वपूर्ण है। कार्यक्रम ने इस संबंध में प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के माध्यम से बहुत-से अध्ययन शुरू किए हैं। विभिन्न अन्य आवश्यकता-आधारित अध्ययन शुरू किए जाने हैं। बहुत-से ऑन-फार्म प्रयोग भी किए जा रहे हैं।

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